बिश्नोई समाज में हुक्के के बढ़ते चलन, नशे का चलन व बिगड़ती दशा के कारण... निम्नलिखित हैं;- ( 1 ). मात पिता द्वारा अपने बच्चों को 29 नियमों , जाम्भो जी की जीवनी व सबदवाणी के ज्ञान के बारे में न बताना:-* बिश्नोई धर्मपन्थ के संस्कारों की कमी के कारण बहुत रेल भेल हो रहा है। कोई विरले ही मां बाप होंगे जो अपने बच्चों को 29 नियमों व सबदवाणी के बारे में बताते होंगे। व्यक्ति चाहे शिक्षा, खेल,व्यवसाय, नोकरी, खेती किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़े परन्तु जब तक अपने धर्म का ज्ञान नहीं है व अपने गुरु के उपदेशों का ज्ञान नहीं है इतने सब अधूरा है 2.*"करै रसोई हाथ सूं ऑन सू पला न लावै" नियम को अप्रासंगिक बता कर इसे रूढ़िवादिता , छुआछूत, भेदभाव व कूपमंडूक होने की निशानी बताना:-* हालांकि ये नियम शुद्धता के लिए है। माना कि आजकल घर के बाहर का भोजन भी करना पड़ता है परन्तु फिर भी भोजन करते समय इस बात की तसल्ली तो कर ही लेनी चाहिए कि भोजन शुद्ध तरीके से व शुद्ध हाथों से और शुद्ध आदमी द्वारा बनाया जा रहा है या नहीं। कहीं शाकाहारी व मांसाहारी भोजन एक ही जगह तो नहीं बन रहा।। कहीं भोजन में कोई थूक तो नहीं रहा। 3.*उनतीसवें नियम -नील न लावै अंग देखत दूर ही त्यागै की ग़लत व मनमुखी व्याख्या अपने स्वार्थ के लिए करना*:- आजकल नीली जीनज़ व टी शर्ट पहनने का भेड़ चाल वाला चलन चल पड़ा है और इसके लिए कुतर्क करते रहते हैं कि आसमान भी नीला है कबूतर भी नीला है, कई फूल भी नीले हैं तो वो भगवान ने क्यों बनाए। परन्तु वे ये नहीं सोचते कि रंग तो और भी बहुत हैं वो भी पहने जा सकते हैं एक नीले रंग पहनने की ज़िद करना उचित नहीं है। इसलिए युवा पीढ़ी नीलाम्बर हो कर धर्मविमुख होती जा रही है। जबकि जाम्भो जी ने बिश्नोई पुरुषों के लिए सफेद रंग की वेशभूषा बताई थी।। 4.*अंतरजातीय विवाह:-* अंतरजातीय विवाह बिश्नोई समाज व बिश्नोई धर्मपन्थ के लिए बहुत खतरनाक होता जा रहा है और बिश्नोई धर्म व समाज की , दीमग की तरह जड़ें समाप्त कर रहा है। प्रह्लाद पंथी जीवों के बाड़े में अन्य *डी एन ए* के जीव घुसने के कारण व समाज में संक्रमण होने के कारण आगे आने वाली पीढ़ी वर्णशंकर हो जाएगी व क्रोस ब्रीड होने के दुष्प्रभाव पड़ेंगे। जैसे प्रत्येक समाज के रीति रिवाज, पहनावा, खान पान, संस्कृति व बहुत सी अन्य चीज़े अलग अलग होती हैं जिनका अन्य समाज से तालमेल कभी भी नहीं बैठ सकता। इसलिए अंतरजातीय विवाह करने वाले बाकी समाज से कट जाते हैं व मनमर्ज़ी करने लग जाते हैं। अंतरजातीय विवाह करने से कोई भी ग़ैरबिश्नोई कभी भी बिश्नोई नहीं बन सकता क्योंकि वो ग़ैरबिश्नोई प्रह्लाद के बाड़े का जीव नहीं है और उसका डीएनए अलग है। भगवान विष्णु की दिव्य दृष्टि ही प्रह्लाद के शेष बचे 12 करोड़ जीवों की पहचान कर सकती है। जैसा कि सबदवाणी में कहा भी है कि :- *कोड़ तेतीसूं बाड़े दीन्ही तिनकी जात पिछाणी* इस प्रकार भगवान जाम्भो जी को प्रह्लाद के अनुयायी बिछड़े हुए जीवों की पहचान थी और उन्हीं में से चुन चुन कर बिश्नोई बनाए थे जैसा कि सबदवाणी में कहा भी है कि:- *म्हे चुन चुन लिया रत्ना मोती* और *म्हे खोजी थापण होजी नाही* और इस प्रकार सभी बारह करोड़ जीवों को भी उन्हीं बिश्नोइयों के घरों में जन्म जन्म लेने के प्रारब्ध व संस्कार जागृत कर दिए थे। इसलिए उन्हीं बिश्नोइयों के घरों में जन्म लेने वाले भी जन्म से बिश्नोई बने। अन्य कोई भी केवल मात्र *पाहल* लेकर बिश्नोई नहीं बन जाता। भगवान जाम्भो जी किसी को भी ये अधिकार देकर नहीं गए कि उनके बाद कोई भी किसी को भी पाहल दे कर बिश्नोई बना दे। क्योंकि जाम्भो जी के अतिरिक्त किसी को भी प्रह्लाद के बाड़े के जीवों की पहचान नहीं हो सकती। ये पहचान केवल और केवल भगवान को ही अपनी दिव्य दृष्टि के कारण हो सकती है। 5.*बिश्नोई समाज के धार्मिक स्थलों,धार्मिक कार्यक्रमों, संस्कार शिविरों,धार्मिक संस्कार परीक्षाओं,जमा जागरण, चलु पाहल, बिश्नोई धार्मिक आयोजनों इत्यादि में अन्य जातियों के लोगों का प्रवेश:-* बिश्नोई समाज के पवित्र धामों में विभिन्न खान पान, विभिन्न वेशभूषा, विभिन्न संस्कृति व मांसाहारी, अंडे बकरे व मुर्गे खाने वालों , हुक्का पीने वालों,के प्रवेश से भी धर्मपन्थ का भजन होता है। वर्तमान समय में अपने बिश्नोई समाज के एक प्रतिशत लोगों को भी 29 नियम व सबदवाणी का ज्ञान नहीं है। युवा वर्ग नशे की चपेट में आता जा रहा है, नीले रंग के वस्त्र पहनने लग गया है, मां बाप से ऊपर हो कर अंतरजातीय विवाह कर रहा है । जानवरों वाली भद्दी कटिंग करवाने व बकरा दाढ़ी रखने लग गया है। संस्कारहीन होता जा रहा है। इसलिए हमें अपने समाज की भावी पीढ़ी में संस्कार डालने के कार्यक्रम करने चाहिए न कि अदर कास्ट में। जब स्वंय का ही घर व खेत भिला पड़ा हो तो दूसरों के खेत संवारने का क्या औचित्य है। ऐसी सोच व ऐसे क़दम का परिणाम ये होगा कि दूसरों का खेत तो संवरेगा नहीं उल्टा अपने खेत को वे अवश्य बिगाड़ देंगे। मांस अंडे मुर्गे खाने वालों, हुक्का पीने वालों की संगत से तो हम वो ही सीखेंगे जो वो करते हैं। दूसरे तो हुक्का, मांस अंडा, बकरा, मुर्गा खाना पीना इत्यादि छोड़ेंगे नहीं आप चाहे कितने ही प्रयास कर लो क्योंकि वो उनकी संस्कृति है उल्टा अपने वाले उनसे ये काम ज़रूर सीख लेंगे। चन्द बिश्नोई तो हुक्का पीने भी लग गए हैं। यदि मुर्गा अंडा शरू कर दिया तो बिश्नोई धर्मपंथ व बिश्नोई समाज का सर्वनाश हो जाएगा जिसके लिए हमारे समाज के ही कुछ ज़्यादा ही आधुनिक, व ज़्यादा ही शिक्षित व वक़्त के साथ ज़्यादा ही आगे बढ़ने वाले लोग ही जिम्मेदार होंगे जो 29 नियमों पर चलने वाले बिश्नोइयों को रूढ़िवादी व कूपमंडूक समझते हैं । इन लोगों के ऊपर समय रहते यदि हमारे समाज के साधु संतों ने लगाम नहीं लगाई तो हुक्का इत्यादि सारे बिश्नोइयों के घरों में प्रवेश कर जाएगा । *आजकल एक ट्रेंड और चल पड़ा है। वो ये कि विदेशों में जा कर बिश्नोई धर्म का प्रचार करना और दूसरे समाज के लोगों को बताना कि देखो हमारे नियम कितने अच्छे हैं। अपने ख़ुद के ख़राब होते हुए समाज, संक्रमित होते हुए समाज को न सम्भाल कर अब विदेशियों को ज्ञान देंगे।* यदि विदेशियों ने आकर बिश्नोइयों को बीड़ी सिगरेट पीते, मद्यपान करते, अन्य नशा करते, नशे का व्यापार करते, नीले रंग के वस्त्र पहने हुए, देख लिया तो समाज की विदेशों में कितनी छवी ख़राब होगी कि कुछ लोगों ने उन्हें विदेशों में जा कर क्या बताया व हक़ीक़त क्या निकली 6.*पुराने जमाने में मजदूरों के लिए बिश्नोईयों के घरों में बीड़ी के बंडल रखना:*-पुराने ज़माने में खेत में काम करने वाले मजदूरों के लिए बिश्नोई भाई अपने घर में ही बीड़ी का बॉक्स रखते थे जिनके कारण बहुत से बिश्नोई लोग बीड़ी पीना सीख गए।। बिश्नोई के घर में बीड़ी का बॉक्स रखने के कारण कुछ बड़ी उम्र के व छोटी उम्र के बच्चे व युवा भी उस बॉक्स में से बीड़ी का बंडल निकाल कर या बंडल के पिछले सिरे से एक बीड़ी खींच कर पीने लग गए। बंडल के पीछे से इसलिए निकालते थे ताकि पता न चले। इस तरह बिश्नोई भाई दूसरों की देखा देखी बीड़ी पीने लग गए। *वर्तमान में कुछ बिश्नोई भाई दूसरों की संगत के कारण हुक्का भी पीने लग गए हैं।* कितनी शर्म की बात है।

7.*खेतरपाला (भोमिया) इत्यादि के शाब्दिक अर्थ व इसकी पूजा न करने के बारे में सबद संख्या 5 का पता न होना:-* जाम्भो जी ने सबद संख्या 5 में नाम लेकर कहा है कि इन इन की पूजा क्यों करते हो। खेत्रपाला का अर्थ *भोमिया* होता है और जाम्भो जी ने कहा है कि इनकी पूजा किसलिए करते हो केवल एक विष्णु की ही पूजा करनी चाहिए । परन्तु अज्ञानता वश बिश्नोई लोग इनके स्थलों पर *बलियारे बलियारे* करके पूजा के लिए जाते हैं । इसलिए रेल भेल हो गए।। इन बलियारों से तो जाम्भो जी ने बिश्नोइयों का पिंड छुड़वाया था। 8.*बिश्नोई समाज के धार्मिक स्थलों पर केवल सैर सपाटे व सेल्फी लेने के लिए जाना व कुछ लोगों द्वारा इन्हें पर्यटन स्थल बनाने की बात करना:-* धार्मिक स्थल पूजा व आस्था के स्थान होते हैं उन्हें यदि पर्यटन स्थल बना दिया गया तो सब गड़बड़ हो जाएगा। फिर धर्म बचेगा नहीं । गोवा जैसे पर्यटन स्थलों पर क्या होता है वो सबको पता ही है।। पर्यटन स्थल बनने के कारण हमारे धार्मिक स्थलों पर प्रत्येक जाती के लोग आने लग जाएंगे जिनमें बकरा मुर्गा अंडा खाने वाले व हुक्का पीने वाले लोग भी होंगे। तो वे लोग हमें वो ही सिखा कर जाएंगे जो वे करते हैं 9. *धर्म मे राजनीति का प्रवेश व प्रदूषण:-* धर्म स्थलों को कभी भी राजनीतिक काम के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए। राजनीति को हमेशा धर्म व धर्मस्थलों से बिल्कुल ही अलग रखना चाहिए। धर्मस्थलों पर केवल व केवल धर्म की ही बात होनी चाहिए वहां राजनीति की बात नहीं होनी चाहिए। राजनीति बेशक करो परन्तु राजनीति उचित स्थान पर करो । वोट के मकसद से धर्मस्थलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दलों के लोगों द्वारा धर्मस्थलों का राजनीतिक प्रयोग बड़ा घातक होता है। धर्म पृष्टभूमि में चला जाता है।उपरोक्त सभी बातों के कारण वर्तमान में बिश्नोई धर्म व समाज की दुर्दशा होती जा रही है, युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आती जा रही है, अंतरजातीय विवाह हो रहे हैं, रिश्ते छूट रहे हैं, पुत्र पिता की बात नहीं मान रहा, 29 नियम व सबदवाणी की कोई भी परवाह नहीं करता न ही इन्हें कोई पढ़ता तो फिर संक्रमण व प्रदूषण तो फैलेगा ही । इसलिए बिश्नोई सभाओं के लोगों व साधु संतों का ये कर्तव्य है कि वे पहले अपने बिश्नोई समाज को संभाले ,29 नियमों व सबदवाणी का प्रचार करके मार्गदर्शेन करे ।

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