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इतिहास गवाह हैं कि लोदी सम्राज्य से लेकर आजादी 1947 तक, हिन्दुस्थान का एक मात्र विश्नोई ही धर्म ऐसा रहा हैं, जिसको सभी ने सरंक्षण दिया था ।


इतिहास गवाह हैं कि लोदी सम्राज्य से लेकर आजादी 1947 तक, हिन्दुस्थान का एक मात्र विश्नोई ही धर्म ऐसा रहा हैं, जिसको सभी ने सरंक्षण दिया था ।
निवण प्रणाम 
इतिहास गवाह हैं कि लोदी सम्राज्य से लेकर आजादी 1947 तक, हिन्दुस्थान का एक मात्र विश्नोई ही धर्म ऐसा रहा हैं, जिसको सभी ने सरंक्षण दिया था । 

      राजस्थान का इतिहास बताता हैं कि श्री गुरू जाम्भोजी महाराज का दरबार, समराथल नामक टील्ले पर कभी भी 17 राजाओं व लगभग 3 हजार भग्तगणों की उपस्थिती से संख्या कम नहीं रही थी साथ यही भी लिखा गया हैं कि उस समय एक स्थान पर इतने राजाओं का इक्कठा होना व एक जगह पर साथ रहकर, श्री गुरू जाम्भोजी महाराज की बातों को मनन करना व अमल करना, यह भी एक इतिहास हैं । राजाओं की संख्या उपर में 26 तक रहना, इतिहास में दर्ज हैं ।
      श्री गुरू जाम्भोजी महाराज के कहने पर, अनेक घोर प्रतीद्वंदी रहे राजाओं की समराथल धोरे पर आपस में मेत्री सन्धियां व सम्बन्ध भी स्थापित हुऐ थे । जिसमें से एक मेड़ता (नागौर)के राव दुदा जी की पोत्री भग्त मीरा बाई व चितौड़ के राणा सांगा के पोत्र भोजराज का लग्न (रिस्ता/ मंगनी ) होना । राणा सांगा व राव दुदा के आपसी सम्बन्ध अच्छे नहीं थे मग़र दोनो ही राजा श्री गुरू जाम्भोजी महाराज के परम शिष्य थे । जब भग्त मीरा बाई मात्र आठ वर्ष की थी तब अपने दादा राव दुदा जी के साथ समराथल धोरे पहुंची थी, तब श्री गुरू जाम्भोजी महाराज ने मीरा के सर पर हाथ रखकर आशिर्वाद दिया व दुदा जी से कहां कि यह बच्ची आगे चलकर मैरी बहुत बड़ी भग्त बनेगी व मैरे कृष्ण स्वरूप को प्राप्त करेगी । आप इस बच्ची का विवाह चितौड़ के राणा सांगा के पोत्र भोजराज के साथ कर देना । उधर राणा सांगा भी श्री गुरू जाम्भोजी महाराज की बात कैसे काट सकता था । इस प्रकार से एक-दुसरे के दुश्मन रहे दोनो राजाओं में परिवारिक सम्बन्ध बने ।
      आज यह बात ना तो कौई विश्नोई जानता हैं व ना ही किसी को पता कि सम्पुर्ण विश्व की एक मात्र मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद हैं, जहां पर सभी धर्म के लोग समान रूप से प्रार्थना करने आते हैं मग़र इस बात के सच को कोई नहीं जानता कि इसकी वजह क्या हैं हालांकि यह सभी जानते हैं कि इस मस्जिद का निर्माण, दिल्ली के सम्राट इब्राहिम लोदी व सिकन्दर लोदी (यह दोनों सम्राट पिता-पुत्र थे) ने करवाया था । इस लिऐ आपको जानना जरूरी हैं कि सिकन्दर लोदी व इब्राहिम लोदी, श्री गुरू जाम्भोजी महाराज के परम शिष्य थे जो भगवान श्री जाम्भोजी की बात से प्रभावित होकर, मानव समाज में धर्म, मज़हब के नाम पर होने वाले भेदभाव को खत्म करके, एकता व भाईचारे के लिऐ दिल्ली में एक मस्जिद का निर्माण शुरू करवाया था, जिसका नाम उन्होनें अपने गुरू श्री जाम्भोजी के नाम पर रखा था *जाम्भा मस्जिद* ! जो कालान्तर में आज जामा मस्जिद के नाम से जानी जाती हैं ! आज भी इस मस्जिद पर हिन्दु व मुस्लिम समान रूप से पुजा प्रार्थना करने आते हैं ! मग़र विश्नोई इस बात को नहीं जानता कि हमारा इतिहास क्या था ! 
    अर्थात् मेरे कहने का तात्पर्य यह हैं कि विश्नोई धर्म को आजादी से पहेले सभी राजाओं , सम्राटो व ब्रिटिश शासकों ने सरआँखों पर बिठाकर, सरक्षंण ही नहीं बल्की ईश्वर की तरह पुजा था ! जैसलमेर के राजा जैतसी ने भगवान श्री जाम्भोजी महाराज से अरदास की थी कि मुझे आप सिर्फ दो विश्नोई दे दिजिऐ, जिसके हम लोग दर्शन करेगें, पुजा करेगे ! तब श्री गुरू जाम्भोजी महाराज ने लक्ष्मण गोदारा व पाण्डू गोदारा नामक दो विश्नोई जैसलमेर की सीमा में बसाया था !
       ओर तो ओर, जो लोग आज विश्नोई धर्म की भावनाओं को आहत कर रहे हैं या ठेस पहुंचा रहे हैं , उन्हें मैं बताना चाहुंगा कि देशनोख की करणी माता ने अपने जीवनकाल में ही अपने परिवार व समाज से कह दिया था कि मैरा अन्तिम संस्कार (अग्नी दाग) किसी विश्नोई के ही हाथ से करवाना हैं अन्यथा मुझे मोक्ष की प्राप्ती नहीं होगी, क्योंकि आप सब परिवारजन तो सभी मासहारी व जीवों के हत्यारे हो ! यदि मैरी अन्तिम ईच्छा पुर्ण करना चाहते हो तो किसी विश्नोई से ही अन्तिम संस्कार करवा देना, ओर तुम लोग मुझे मृत्युपरान्त हाथ तक मत छुना ! फिर ठीक वैसा ही किया गया था !
    कुल मिलकर हमारा इतिहास बहुत बड़ा हैं , ऐसे लाखों उदाहरण हमारे विश्नोई धर्म के इतिहास में मोजुद हैं । विश्नोई कोम एक क्षत्रिय कोम थी,है व रहोगी ! 
   ओर हम यह भी जानते हैं कि आप क्यों विश्नोई धर्म की भावनाओं को आहत करने में लगे हो ? क्योंकि आपको पहेली बार लोकतंत्र के माध्यम से, स्वंय को सफेद दिखाने का मौका मिला हैं, क्योंकि आपका इतिहास तो किसी से छुपा नहीं हैं ! फिर भी हम तो आप ही की चिन्ता करते हैं कि प्रकृती के बगैर किसी का भी जीवित रहना सम्भव नहीं हैं, इस लिऐ स्वंय के पैर में कुल्हाड़ी मत मारो ! यह वन्यजीव भी प्रकृती का हिस्सा हैं ! इसका भी दर्द समझो मुगलों के सालों ।
    एक तड़फते विश्नोई के हृदय की आवाज ।
हम सब कुछ सह लेगें, पर इस बैजुबान, लाचार व मासुम वनचरों को कैसे खत्म होते देखें ? मोदी जी, हमारी कौम को किसी ऐसे टापु पर छुड़वा दो, जहां ऐसे राक्षस ना हो जो वन्यजीव को परेशान करें ।
[बहुत अच्छा लिखा है लिखा है गोदारा साहब सभी को पूर्वजों के सम्मान ओर स्वाभिमान की रक्षार्थ वर्तमान में शिक्षित गयुवा बहन भाई बिश्नोई को ऐक एसी प्रतिज्ञा करके पूर्वजों की भांति कर्त्तव्य निष्ठ बनना चाहिए. ओर संरक्षण की जगह जरा सा शब्द बदल गया.सभी ने सम्मान दिया आदर दिया नतमस्तक होकर कर्त्तव्य कर्म रुपी नियमावली अपनाई ओर जंम्भेश्वर जी की आज्ञा पालन करक भ्रांति रहित हुए ओर विश्व पोषक विश्व शांति हेतु ऐकिक्रित हुए ।

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